भगवद् गीता के अनुसार भक्ति योग का सारांश
1. प्रेम और समर्पण:
भक्ति योगी भगवान के प्रति प्रेम और समर्पण की वृद्धि करने के लिए अपनी आत्मा को समर्पित करते हैं। उनका लक्ष्य भगवान की भक्ति में खो जाना होता है और सभी कार्यों को भगवान के लिए सेवा समझना होता है।
2. ईश्वर की सेवा:
भक्ति योगी ईश्वर की सेवा में लगे रहते हैं। यह सेवा भक्ति योग का महत्वपूर्ण अंग मानी जाती है और भगवान के चरणों में अपने आपको समर्पित करने के माध्यम से व्यक्त होती है।
3. भगवद्भावना:
भक्ति योगी भगवान की भावना में खो जाते हैं और उन्हें अपने चित्त को भगवान के ध्यान में स्थिर रखने के लिए प्रयास करना चाहिए। इसके लिए उन्हें ईश्वर के गुणों, रूपों और लीलाओं की समझ कर भगवान के प्रति प्रेम विकसित करना चाहिए।
4. अध्यात्मिक ज्ञान:
भक्ति योगी को अध्यात्मिक ज्ञान का अध्ययन करना चाहिए। उन्हें भगवद्गीता जैसे पवित्र ग्रंथों का अध्ययन करके अपने चित्त को आत्मा के रूप में जागृत करना चाहिए।
5. निःस्वार्थ भक्ति:
भक्ति योगी को अपनी भक्ति को निःस्वार्थ बनाना चाहिए। उन्हें चाहे फल मिले या न मिले, उन्हें सिर्फ भगवान की प्रेमभावना में खो जाना चाहिए।
भक्ति योग भगवान के प्रति गहरी प्रेमभावना की प्राप्ति के माध्यम से मुक्ति की प्राप्ति को संभव बनाता है। यह मार्ग प्रेम, समर्पण, सेवा, भावना और ज्ञान के माध्यम से अनंत चैतन्य के साथ एकीभाव को प्राप्त करने का उपाय है।